तुमने पूछा है, ख़याल दिल का,
कह भी दूँ कैसे ये हाल-ए-दिल का।
सोचता हूँ अंदाज़, उस पहली बात का,
खुला जो राज़, हिज्र-ए-यार, विसाल दिल का।
सवाल है एक, उस पहली मुलाक़ात का,
जो सिलसिला न बना, बस मलाल दिल का।
गुमाँ था लौटोगे, लेने हाल-ए-दिल का,
रह गया ख़ाम-ख़याल, बेहाल दिल का।
जवाब क्या दूँ, अब तेरे सवाल का,
एहसास-ए-खामोश, बदहाल दिल का।
वर्ज़न-२
तुमने पूछा है, क्या ख़याल-ए-दिल का,
कह भी दूँ कैसे ये हाल-ए-दिल का।
सोचता हूँ मैं फिर वही एक लम्हा,
खुल गया था जो इक विसाल-ए-दिल का।
रह गया बस मलाल उस मुलाक़ात का,
जो बना ही नहीं कमाल-ए-दिल का।
गुमाँ था कि आओगे लेने ख़बर तुम,
रह गया बस ग़ुबार हाल-ए-दिल का।
क्या कहूँ अब मैं तेरे इन सवालों,
सिर्फ़ खामोश है मलाल-ए-दिल का।
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