poet shire

poetry blog.

Saturday, March 15, 2025

बचपन के भूले गीत: अधूरी गुफ्तगू

 वो गुफ़्तगू थी जो कहीं सगूफ़ों में
एक याद बनकर रह गई है।
कहीं सुनाई देती है उस झंकार की फ़नकार,
तो वाह-वाही से महफ़िल सज जाती है।

वो नाम अब भी गुमनाम है,
शायद उनसे कोई गुफ़्तगू अब भी बाक़ी रह गई हो।

No comments:

Post a Comment

ads