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Friday, March 21, 2025

सोहबत-ए-सांझ

 
एक सुनहरी सांझ, दूब से ढका मैदान, हल्की हवा में झूमते पेड़, पंछियों की परछाइयाँ और प्रेमी युगल। लड़का अपनी प्रेमिका की गोद में सिर रखे, उसकी आँखों में खोया हुआ है, और वह उसे प्यार भरी नजरों से देख रही है। यह सीन तुम्हारी कविता के भावों को पूरी तरह जीवंत कर देता है।



तेरी ज़ुल्फों से हुई वो शाम,
और तेरी आँखों में डूबा था मैं।
तेरा गोद था सिरहाना,
एक अनोखे मंज़र में खोया था मैं।

बायरों की मस्ती थी,
या खिलती तेरी हस्ती थी,
खिल उठती फिज़ा सारी,
जब भी तू हंसती थी।

लब खामोश थे,
पांव तले थे दूब के गलीचे,
मंजर खुद बयां कर रहे थे ,
दास्तान-ए-सोहबत मुहब्बत के।

यूँ बयां की,
मंज़र ने सोहबतें दास्तान हमारी।
सुना है,
इन्हें गाते हैं बागों के फूल सारे खुशबुओं में,
और विहंग,
करते संध्या गायन,
जो सोहबत-ए-सांझ हमारी थी।

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