poet shire

poetry blog.

Saturday, March 15, 2025

बचपन के भूले गीत:मुफ़लिसी

 रूठ जाते हो तुम क्यों अमूमन यूं ही,
टूट के बिफ़र जाते हैं निशा के रंग भी।
अंदाज़ का जो ख़याल आता है,
तो आईने ये कह देते हैं — मुस्कुरा दो।

क्यों जीना यूं मुफ़लिसी में ज़िंदगी,
ये तो अदा है उनकी,
जिनसे सज गई है ज़िंदगी।

No comments:

Post a Comment

ads