रूठ जाते हो तुम क्यों अमूमन यूं ही,
टूट के बिफ़र जाते हैं निशा के रंग भी।
अंदाज़ का जो ख़याल आता है,
तो आईने ये कह देते हैं — मुस्कुरा दो।
टूट के बिफ़र जाते हैं निशा के रंग भी।
अंदाज़ का जो ख़याल आता है,
तो आईने ये कह देते हैं — मुस्कुरा दो।
क्यों जीना यूं मुफ़लिसी में ज़िंदगी,
ये तो अदा है उनकी,
जिनसे सज गई है ज़िंदगी।
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