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Monday, March 17, 2025

दूजे से रह गए

 

प्यार का क़स्बा सुना था मेरे लिए,
इश्तेहार कोई बहुरूपिया दे गया।

इंतज़ार की बेताबियाँ जब शब्द बनीं,
शब्द उनकी महफ़िलों के चर्चे बन गए।

कलम और क़लमे के हुनर के दीदार में,
कमबख़्त एक हम ही दूजे से रह गए।

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