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Saturday, March 15, 2025

बचपन के भूले गीत: समा-बेवफ़ा

 समा तो तभी रंगीन हुई थी जब कि,
जब फ़ितरतें आवारा थीं।
मगर ज़ालिम समय की नज़ाकत को कोई नहीं जानता,
शाम भी तभी होती है जब मंज़िल क़रीब हो।

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