ये अश्क भी गीले पड़ गए हैं,
जो मोती तुमने ठुकरा दिए,
कुछ ख़ामोशियाँ बाक़ी हैं,
कुछ यादें अब भी बची हैं।
हर शाम कहती है कुछ यूँ—
ज़िंदगी एक जाम है, पीए जा रहे हैं,
ग़मों की एक शाम है, जिए जा रहे हैं।
ये जाम लफ़्ज़ों पे आए, तो बस आरज़ू है,
ये जाम नब्ज़ों में उतर जाए, तो बस ज़िंदगी है।
ज़ेहन से उठता धुआँ,
जिस तलब की तलाश में भटक रहा है,
जाने वो फिर से मिलेगी कैसे..
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