उनके खेल में दो दिल होते हैं,
एक उनका, एक मेरा।
नियम खेल के सारे उनके,
चित्त भी उनका, पट भी उनका।
जीत उनकी और हार बस मेरी,
खुशियाँ उनकी, बेबसी मेरी।
बचपना भी उनका,
परिपक्वता भी उन्हीं की।
हम तो बस बंदर से नाचते रहते हैं,
रात की दो नींद और अगले दिन
फिर एक नए खेल के लिए।
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