१
ग़र मेरे रूह-ए-सुकून का इल्म है तुझे दिलनशीन,
तो ये भी मान कि ज़ुल्मत-ए-शब भी तुझसे ही है।
तेरा ही नाम लेकर रौशन किए थे दिल के चराग़,
मगर अफ़सोस, इस रोशनी में साया भी तुझसे ही है।
२
ये मेरे यक़ीन का इम्तिहान है,
कि हूँ तेरे दिल में मैं भी कहीं।
तेरी बिरहा की तड़प बता रही है,
कि हूँ तुझमें ज़िंदा मैं अब भी कहीं।
३
बर्बादियों के आख़िरी मंज़र की अंजुमन में,
ख़याल बरबस यूँ उतर आया…
तेरी दीद की थोड़ी सी धूप दिख जाए,
बसर-ए-नूर का आबे-हयात छलक जाए…
४
बहर-दर-बहर अशआर बहे इस क़दर,
बे-वफ़ा यार में बुझ गए शब ओ सहर।
५
इतनी बेगारी में बैठे है
तसव्वुर ए यार लिखते हैं
न कुछ कहते हैं न सुनते हैं
तेरी याद में तुझे लिखते हैं
बेख्याली, बेदिली का अलम न पूछो
ए मुश्यरे-दीदों
की यादों से ख़ाक हो सनम लिखते हैं
६
आपके शब-ए-ग़म की महफ़िलों के, दीवाने तो थे बहौत,
हम शब-ए-तन्हाई में, जुगनू बने, लशकारे बिखेरते रहे।
७
उमसाई गर्मी में गिरती हो बारिश जैसे।
८
तुम्हारे ज़ख्मों को चूमकर आज़ाद कर दूं,
जो तुम इन्हें सहेजना चाहो,
इन्हें गीतों और ग़ज़लों में आबाद कर दूं।
९
मतला से मक़ता तक एक सिलसिला चला,
उनके हुस्न का हर बयाँ ग़ज़ल हो चला।
११
हर वो शख्स जो बीता हुआ कल होता है,
जाने क्यों दिल आज भी उनको बुनता रहता है।
१२
वो ढूंढता रहा मुझसे दूर जाने के बहाने,
बहानों में खोजता रहा मैं पास आने के तराने।
१४
तुम न मिले थे, तसव्वुर-ए-इश्क़ इबादत था,
मिल के क्या गए, वजूद-ए-इश्क़ वहशत हो गया।
१५
शेर - दोस्ती और आज़ादी
एक रोज़ मेरे खास दोस्त ने कहा था—
"सोचो तो मिलकर दोस्त, मैं तुझमें अपनी आज़ादी की सहर देखती हूँ।"
मैंने मुस्कुराकर कहा—
"तू ही तो मेरी अभिव्यक्ति की अंतिम आज़ादी है, इस बेग़ैरत दुनिया में!"
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