poet shire

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Sunday, March 16, 2025

यादों की तहज़ीब

भूलने की तहज़ीब अभी तक नहीं सीखी,
न यादों को संजोने का तजुर्बा है।
चाहतों की सिलवटें अब उभरने लगी हैं,
शायद…
मगर ये चलती साँसें, ये धड़कते दिल,
यादें नहीं बना करते।

यादें तो तब मुकम्मल होंगी,
जब ये साँसें थम जाएँगी,
जब धड़कनों की आख़िरी दस्तक होगी, मेरे दोस्त।

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