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Saturday, March 15, 2025

कभी बुलाते नहीं, मगर,

 कभी बुलाते नहीं, मगर

तस्वीर मेरी दिल पे रखकर,
मुझे छुप-छुप कर याद करते हो,
अपनी ग़ज़लों में,
फिर मुझे आबाद करते हो...
तुम भी तो...
तुम भी तो...
मुझसे ही प्यार करते हो।

तुम भी तो, जुदाई में,
बहते अश्कों से सवाल करते हो,
ज़ुदा करके खुद से मुझे,
फिर मेरा इंतज़ार करते हो।
इबादत भी, महरूमियत भी,
ये कैसा इंतक़ाम करते हो?
तुम भी तो...
तुम भी तो...
छुप-छुप अश्रु बहाकर,
मेरा इंतज़ार करते हो।

~वृहद

उज़्र आने में भी है और बुलाते भी नहीं
बाइस-ए-तर्क-ए-मुलाक़ात बताते भी नहीं
~दाग़ देहलवी



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