poet shire

poetry blog.

Friday, December 22, 2017

ये कविता तुम्हारी

ये तुम्हार दिमाग न हो गया की 
की है ये  कविता मैन्युफैक्चरिंग मशीन 
कहाँ से लाते हो ऐसे जज़्बात 
और कहाँ से आती हैं 
दिलों को छू जाने वाली बात। 

उस चक्की का आंटा हम भी खाते 
पर क्या करें 
हमारे यहाँ तो बस चावल ही मिलता है 
फिर भी बता दो 
कौन सी चक्की का आंटा कहते हो 
भोले बलम !
हर सेकंड एक नयी कविता लिख जाते हो। 

आपकी कविता मानो 
एक जीवन सार हो आपका 
जीवन ही कविता है या 
कविताओं में बसी जिंदगी है आपकी। 

ऐसे तरसाते हो 
न कुछ बताते हो 
बस हर छंद में 
हमे ही गुनगुनाते नजर आते हो 

वहम  है हमारा या 
इबादतें है ये तुम्हारी 
हर काव्य में मानो 
की बस चर्चा हो हमारी। 

ये कविता है तुम्हारी या 
शब्दों में घुली कोई तस्वीर हमारी। 



Thursday, December 21, 2017

लेखन-लेखनी

लेखन-लेखनी में मैं,
देखूं तुममे सपने साँच 
जो छलके जाये वो लिखूं  मैं 
सब प्यार भरे जज़्बात। 
हिना के रंग में रंगूं , मोहिनी 
तुमको, प्रेम पात्र में भरकर 
स्नेह सुगंध आवाज़। 

लेखन लेखनी में
खोल दूँ सारे राज़
झर झर बहे जो नदिया बनकर,
जिनके तीरे बैठ बजाऊं मैं
मुरली की तान, बना दूँ
संग तुम्हारे बीते
यादों की पहचान।

लेखन-लेखनी मेरी
है सिमरन की माला
इन्हे  पेहेन के रोज़
वरूँ  तुम्हे  मैं
हो जाऊँ मैं बस तुम्हारा।



एक दौर


खुद के हौसलों की
हम दुहाई दें
या इससे रुस्वाई करें

जेहन में बसी याद ऐसी
की दूर जाने भी न दिया
और जुदाई ऐसी
की साथ रहने भी न दिया।

उन दौर में भी
आभा सी रही तुम
जो मुख पे खिलती
उषा भी रही तुम
जो हर छण मुझ पे
बिखरती आशा बन कर।

एहसास में बांध कर
हर सांस की डोर में पिरो कर
दिल की धड़कनों से गुज़ारा है
हर छंद में यादें  बसी हैं तुम्हारी
और शायद एक जीवन भी बसाया है
हमने तुमने मिलकर। 


Friday, December 15, 2017

अदायगी



बड़े ज़ोर की जुलाब लगी थी,
पेट में अजीब सी हलचल मची थी 
कपल पसीने से तर था,
चेहरे बरबस ही मुस्कुरा रहे थे। 

और एक वो थे साथ में,
साथ में ही रेस्टरूम जाने की ज़िद कर बैठे ,
और कह दिया की झूठ बोलते हो,

कोई तो रोक लेता 
और कुछ समझ भी देता,
हाथ में तकिया था बेरहम के,
सीधा पेट में दे मारा मेरे,
इज़्ज़त फिर भी बाल बाल  बच गयी 

शुक्र करां तेरा रब्बा,
मेरी खैर मान गया,
जुलाब अपनी जगह और 
उनका दिमाग अपनी जगह चला गया। 

फिर जाने कब ऐसी लड़ाई होगी 
या बस शब्दों की हीं गुथम गुत्थाई होगी।

माघ पूस या बैसाख़ सावन 
जाने कब मिलूं मैं फिर तुमसे बांके साजन। 


आपनो ख्याल भी दो




क्या करना है आपनो
खुल के दें बताये,
चटनी चाटन् चाट चाट ,
भुखवा मिट ना पाये . 

रूखे मनवा भेदन, भेद है
सुखल मनवा हुआ असाढ

बदरी पडी सवाल मे,
बुझनी बुझ बुझ जाल
माया अतीरे आपनौ
बुझनी बुझ ऩ पाये



पहलु के अऩजुमन

पहलु के हर अऩजुमन मे सोचा
अापको न सोचने की गुस्ताखियोंं को
पाया हमने चहुंओऱ उजाले
अापके हीं एहसासों के.


दीदार-ए-जश्न ख्याल।



हमने देखे हैं उनके हुस्न की ताबीर पे रंग सभी,
बस खामोशियों के रंग न समझ पाये हम कभी। 


प्रहेलिका जो गुफ्तगू के आगाज़ कर दे फिर से
इल्म-ए-जज्बात उनके, न समझ पाये हम कभी।

यूँ खुद को खामोशियों में कैद कर बैठे हो क्यों
कद्र-ए-जहां लुटाते थे तुम भी हम पे कभी
आज उन निशानियां-ए-गुलिस्तां पे बैठे हो क्यों
खिदमते- हिदायत थे जिनके तुम कभी।

न कर ऐ परवरदिगार इन्तेज़ार-ए-परस्तिश-बेआबरू
संगम के वास्ते चुने जज़्बात अभी बाकी हैं सभी
ईद के चाँद पे रोजा टूटा करते हैं मौला जानते हो ये तुम भी
बस ईद के चाँद वो मेरे दिखते नही कभी 
ये इंतेज़ार-ए-बहार किसी रोजा से कम तो नही। 

किस पल टूटेंगे ये रोज़ा इन्तेज़ार के
बस ये न जान सके हम कभी
देखे थे हमने उनके हुस्न पे जो रंग सभी
दीदार-ए-जश्न झलक की हसीं कल्प तो नही।

Thursday, December 7, 2017

रोज़ा इंतज़ार के



जाने क्यों हैं ये रोज़ा इंतज़ार के
जब परवरदिगार के इशारे भी हैं
और है कुछ मौसमों की चाहत भी
कुछ आपके नेक इरादे भी हैं
कुछ फ़िराक ए जेहमत की फितरत भी
कुछ ताक भी है कुछ शौक भी है
शायद,
यूँ ही कुछ खालीपन सा उभर नहीं आया
मिलन के दो पैगाम से।

तो तोड़ क्यों न दें अब हम
ये रोज़ा इंतज़ार के।

ये बयारें ये बहारें,
आपकी हीं तो गुफ्तगू सुनाती है हमें
आओ अब हम तोड़ दें ये रोज़ा इंतज़ार के,
पनाहों में एक दूजे के संग जीत लें
कुछ पल इत्मीनान के।


ताकिया  ए नज़ाक़त उन्मुक्त हो,
दें  ऐसी कोई मिशाल ,
जैसे कोई मशाल सी धधकती रही हो,
सीने में हमारे और आपके
जो बुझ नहीं सकती
बिन एक दूजे के दीदार से
निगाहों के सुख क्यों न पा लें अब
महताब के श्रृंगार से
आओ तोड़ दें ये रोज़ा इंतज़ार के। 







इंतज़ार के मोती



दिल में जो दबा रखे हैं जज्बात आपने
कभी यूँ ही खुलने न दीजियेगा
जिन राहों पे हमें साथ ले चलने की ख्वाइस थी
समय की मझधार में घुलने न दीजियेगा।

ये प्रेमाश्रु मोतिओं से बिखरते रहेंगे
आपके हीं इंतज़ार में
आपके राहों में सजा देंगे हम ये मोती
इंतज़ार में में जो हमें खो दीजियेगा।

मिलन की तहज़ीब



शाही लखनवी तहज़ीब 
शायराना अंदाज़ उर्दू की जुबां 
और धड़कने पंजाबी हैं 
मोहतरमा ! क्या जवाब है आपका 
खय्याम से ख्याल 
ग़ालिब की ग़ज़ल सी लगती हैं आप। 

जाने कब हो मिलन ग़ज़ल से 
पाक दिन के इंतज़ार में 
काट रहे हैं लम्हे जाने कब से। 


Friday, December 1, 2017

बिछडन .

प्यार करने वालो से बिछड़ा नहीं करते
एहसास के धागे सांसो में पिरो कर
जिया करते हैं।

एक तस्सव्वुर है की तू जाने जिगर है
यही तकल्लुफ भी, है सुकून भी
एक पहलु भी, है  इंतज़ार में तू भी कहीं
 एक अरमान, है आरज़ू का आसमान भी।

अँखियाँ चार हुई रही दिल्लगी कुछ बाकि
दिल्लगी के अरमान घुट घुट पिया नहीं करते

मिली है ज़ुल्मत ए  शब् तो क्या हुआ 
हो तेरा साथ साथिया तो  फ़क़त जुदाई क्या चीज़ है।  
बिरहा बियोग कुछ कम गम तो नहीं देता 
तस्वीर आईने की कुछ कम  बेरुखी  तो  नहीं 
हसरते-इंतज़ार कुछ कम  भ्रम तो नहीं देता। 

फिर भी उल्लास उमंग मन का दफ़न किया नहीं करते 
अट्टहास समय के पे रुदन किया नहीं करते 
पास आने की आस को  दहन  किया नहीं करते 
मिलन की अभिलाष का क़त्ल यूँ  किया नहीं करते 
दिल्लगी करने वालों को दिल से कभी जुदा किया नहीं करते। 




Wednesday, August 30, 2017

कलमे की स्याही .



एक स्याही थी खोई सी
एक कलम थी कुछ रोई रोई सी 
कागज़ के कुछ टुकड़े थे बिखरे कोरे से 
अरमान जगे थे जो सोये सोये से 
कुछ तस्वीर जमीं थी आँखों में 
जिनमे लिपट हिये दर्द में  समोए थे 
संगीत बने थे जो निकले थे 
धडकनों की धुन से 
हमने छंद और नगमो में पिरोये थे.

शैलाब  उठा चंचल मन में 
अंजाम ए फ़िक्र से क्या होता है 
नश्वर जग है चंद पलों का,
चंद पलों को हमने आँसू  में खोया है।

नीली नीली स्याही बहती थी,
और  जाने क्या कुछ न कहती थी 
शब्दों का मायाजाल बिखेरे है 
ये कर,क्या करते बस क्रीडा है ??
या मन फिर स्याही की आँसू में रोया है?

Friday, March 3, 2017

ज़िन्दगी का बसेरा

कभी कोहरे है यूँ ज़िन्दगी में
कभी काले बादलों  का घेरा
छणभंगुर खिलखिलाती धुप कभी
कभी नाराज़गी का अँधेरा
न जाने किस ओर छुपा हो
मेरी ज़िन्दगी का बसेरा 

तुम अस्तित्व मेरा

मेरी ज़िंदगी में कविता से भरी एक रोशनी हो तुम
तुम बिन ना कविता है ना रौशनी.
मेरे ज़िंदगी के अस्तित्वा की सचाई है तुमसे जुड़ी
तुम बिन ना अस्तित्वा है ना सचाई


Sunday, February 19, 2017

बेवफा झुमके

रात सजी थी चेहरे पे तुम्हारे
बेवफा झुमके कान को देगा दे गए 
आत्मविभोर हुआ मन तुम्हारा,
जो पड़े मिले वही एक राज के अँधेरे में
खिल गयी उषा से  चेहरे की रौनक तुम्हारी
बालम ! बरबस मुस्कुरा उठे चित तुम्हारे।

क्या एक पेशगी बाकि रह गयी है ?

मन चेतन में आवाज़ सी गूंज रही है
नित पुकारती एक
आकर्षण मनो जैसे कोई,
मैं ही गुम हूँ इस दुनिया में
मेरा भी एक यार छुपा रह गया
दिल के किसी अंधियारे में। 




Saturday, February 11, 2017

यादों की कुछ गमगीन शामें




यहाँ है दवा की दुकान
सामने है मौत के फरमान
कुछ तो लोग जैसे
जनाजो के जश्न मानते है
तो कुछ शमशान को अपना घर बनाते है
जोखिम -ऐ - दस्तूर जिंदगी
तो क्या हुआ हम तो मौत को भी
सहोदर की तरह गले लगाते  हैं
हैवान - ऐ- जिल्लत तू  जिंदगी, तो क्या हुआ?
हम तो शोलों  से भी शबनम चुराते हैं


जारी कर दें यम आज की रात
फरमान आखिरी सांसो का
हम तो लहरो पे भी आशियाँ बनाते हैं
हर सांस गिन गिन  कर
तुम्हे ही समर्पित कर जाते हैं

है तन्हाई आज दुल्हन बनके बैठी मेरी
तो क्या हुआ?
हम झींगुरों से शहनियां बजवायेंगे
खामोशियों की बारात सजाकर  ले आएंगे
तन्हाई को आज हम हमसफ़र बनाएंगे


कुछ गुफ्तगू यु अधूरे  रह जायेंगे
हमने जगती रातों में सोचा न था
इंतज़ार हर भोर को किया हमनें जाने कितनी
शामों का



काली घनेरी चादर पे बिछ जाते  हैं तारे तमाम
याद आ जाती है कुछ अधूरे से  अरमान
हम हर अरमानों के तिनको से
अधूरी आरजुओं को जोड़ कर
एक घर बनाएंगे
घर का हर कोना
तुम्हारी ही यादों से सजायेंगे

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