poet shire

poetry blog.

Friday, March 28, 2025

अधूरे लफ़्ज़

सद-ए-सुकूत (मौन की आवाज़)

सद-ए-ख़ामोशी में मौन उतरा,
वो शख़्स न था, ये कौन उतरा?

नाद-ए-अनहद का जो भोर हुआ,
अनहद के भोर में, ये कौन उतरा?

चित्त-मन सरवर में लहरें थमीं,
दरिया-ए-सुकून में फिर कौन उतरा?

वृहद तिश्नगी जो तृप्त हुई,
आब-ए-हयात सा कौन उतरा?

टूटी तृष्णा, टूटे भ्रम सारे,
मिट गया वृहद तृण-तृण,
चैतन्य ये पुरुष कौन उतरा?




version 2 

सद-ए-सुकूत (मौन की आवाज़)

सद-ए-ख़ामोशी में मौन उतरा,
वो शख़्स न था—ये कौन उतरा?

अनहद नाद का ज्वार उठा,
उस शोर को सुनता ये कौन उतरा?

लहरें थमीं चित्त-सरवर में,
दरिया-ए-सुकून में फिर कौन उतरा?

वृहद तिश्नगी जब तृप्त हुई,
अमृत सा बरसा—ये कौन उतरा?

टूटी तृष्णा, मिटे भ्रम सारे, वृहद मिटा,
चैतन्य में जागा—कौन उतरा?

सद-ए-सुकूत (ग़ज़ल)

सद-ए-ख़ामोशी में मौन उतरा,
वो शख़्स न था—ये कौन उतरा?

अनहद नाद उठा जब दिल में,
उस शोर को सुनता कौन उतरा?

लहरें थमीं जब चित्त-मन सरवर में,
दरिया-ए-सुकूँ में डूबा कौन उतरा?

टूटी तृष्णा, मिटे भ्रम सारे,
वृहद मिटा—पर कौन उतरा?

सदियों से जो खोज रहा था,
आख़िर में मुझमें कौन उतरा?

जागी नज़रों में रौशनी सी,
इस दिल के भीतर कौन उतरा?

ख़ुद को भी पहचाना जब मैंने,
आईना बोला—"कौन उतरा?"

वृहद तिश्नगी जब बुझ भी गई,
अमृत सा बरसा—कौन उतरा?

No comments:

Post a Comment

ads