poet shire

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Monday, March 31, 2025

मंशाएँ ।

 कागजों के पीछे छुप कर,
वो अपनी मंशाएं गढ़ते रह गए।
महरूम, मायूस, मासूम इंसा,
फिर आज तन्हा तन्हा रह गए।"

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