poet shire

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Wednesday, March 12, 2025

तिशनगी में तृप्ति बसर हो…

 तेरी उम्मीद की लौ जले,
जैसे तेरी दीद का असर हो…

तेरा ज़िक्र — हर बात में,
जैसे कोई दूसरा हमसफ़र हो…

मरु में मृगतृष्णा बन तू चले,
"वृहद" जैसे तिशनगी में तृप्ति बसर हो…



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