तुम रूठते नहीं, तो हम मनाएँ कैसे,
हुनर-ए-मनाने को फिर आज़माएँ कैसे?
कितनी धड़कनें बिन धड़के गुज़र गईं,
दहशत-ए-गर्दिश-ए-मंजर दिखाएँ कैसे?
गुफ़्तगू करती हैं ख़ामोशियाँ तेरे–मेरे दरमियाँ,
अंजाम-ए-क़त्ल की दास्ताँ सुनाएँ कैसे?
तसव्वुर में अब भी है तेरी रानाई,
इस बेकरार दिल को फिर बहलाएँ कैसे?
ख़्वाब टूटते हैं तेरी तलब में रोज़,
इस हिज्र की शिद्दत को छुपाएँ कैसे?
बता दो कि अब भी है कोई निस्बत,
'वृहद' इस मोहब्बत को बचाएँ कैसे?
हुनर-ए-मनाने को फिर आज़माएँ कैसे?
कितनी धड़कनें बिन धड़के गुज़र गईं,
दहशत-ए-गर्दिश-ए-मंजर दिखाएँ कैसे?
गुफ़्तगू करती हैं ख़ामोशियाँ तेरे–मेरे दरमियाँ,
अंजाम-ए-क़त्ल की दास्ताँ सुनाएँ कैसे?
तसव्वुर में अब भी है तेरी रानाई,
इस बेकरार दिल को फिर बहलाएँ कैसे?
ख़्वाब टूटते हैं तेरी तलब में रोज़,
इस हिज्र की शिद्दत को छुपाएँ कैसे?
बता दो कि अब भी है कोई निस्बत,
'वृहद' इस मोहब्बत को बचाएँ कैसे?
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