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Monday, March 17, 2025

हौसलों की दुहाई

 ख़ुद के हौसलों की हम दुहाई दें,
या फिर इसे रूसवाई करें?
दिल में जो आग सुलग रही,
उसे कब तक परछाईं करें?

जो अहसास दिल में बसा रहा,
वो दूर जाने न दे सका,
और जुदाई ऐसी रही,
कि पास रहने भी न दे सका।

उन दौर में भी, एक आभा थी तुम,
जो मुख पे खिलती उषा भी तुम।
हर छाँव में जो संग रही,
वो प्यारी सी आशा भी तुम।

एहसासों में बाँधकर हर साँस की डोर,
दिल की हर धड़कन से गुज़रते रहे।
हर लम्हे में यादें बसी हैं तुम्हारी,
शायद एक जीवन भी बसाया हमने—
तुमने, मैंने मिलकर...

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