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Friday, March 21, 2025

बिछड़े थे हम एक मोड़ पर,

 बिछड़े थे हम एक मोड़ पर,
कुछ हसीन यादें छोड़ कर।
जो राहें साथ चली थीं कभी,
रह गईं यादों के निशान छोड़ कर।

तेरा शऊर और तेरा रहम,
तेरी अदा, सब छोड़ कर,
चल दिया तू एक अजनबी सा,
मुझे तन्हा सा छोड़ कर।

काफ़िला-ए-कारवां की थी ये मांग,
तेरी याद चले, तेरा साथ छोड़ कर।
सफ़र की रस्में निभानी थीं यूँ,
दिल को तन्हा सा छोड़ कर।

सफ़र फ़कीरी में, बचा कुछ नहीं,
बस तेरी यादें छोड़ कर।
न कोई मंज़िल, न कोई सहारा,
तू गया, कैसा एहसास छोड़ कर।

बहना है मुझे अविरल धारा-सा,
हर एक ठहराव का अरमान छोड़ कर।
मुक़द्दर की लहरों संग चलता रहा,
सारे अपने अरमान छोड़ कर।

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