poet shire

poetry blog.

Friday, March 3, 2017

ज़िन्दगी का बसेरा

कभी कोहरे है यूँ ज़िन्दगी में
कभी काले बादलों  का घेरा
छणभंगुर खिलखिलाती धुप कभी
कभी नाराज़गी का अँधेरा
न जाने किस ओर छुपा हो
मेरी ज़िन्दगी का बसेरा 

तुम अस्तित्व मेरा

मेरी ज़िंदगी में कविता से भरी एक रोशनी हो तुम
तुम बिन ना कविता है ना रौशनी.
मेरे ज़िंदगी के अस्तित्वा की सचाई है तुमसे जुड़ी
तुम बिन ना अस्तित्वा है ना सचाई


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