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Sunday, May 25, 2025

कल की ही तो बात थी.......

जब ये नभ में बिखरती सोने सी किरणें,
फिर नए उजाले लाने को ढल रही थीं,
अपनी भी साँसें हौले-हौले
इस समाँ में घुल सी रही थीं।

यादों की नदियों तीरे बैठे थे
हम-तुम, और
वो आसमान पिघलते हुए नीलम हो रहा था।
एक ख़ामोशी सी थी, पर बयारें —
बयारें हल्की ठंड लिए,
तन की गर्म आहें लिए उड़ता जा रहा था।

ये परिंदे चहकते थे दिन भर आसमान में,
अब फेरते न थे मुख उस मंज़र पर
जो था तो बहुत सुंदर, पर आख़िरी भी।
वो आख़िरी मुलाक़ात थी,
या शायद, ये कल की ही तो बात थी।


वो आख़िरी मुलाक़ात — यादों की शाम में पिघलता आसमान

वो आख़िरी मुलाक़ात — यादों की शाम में पिघलता आसमान

कुछ लम्हे ऐसे होते हैं जो गुज़र तो जाते हैं, पर उनकी महक, उनकी ख़ामोशी, और उनसे जुड़ी हर एक झलक हमारी रूह में बस जाती है। यह कविता एक ऐसी ही शाम की स्मृति है — जहाँ बिछड़ने से पहले की नमी भी थी और प्यार की आख़िरी धूप भी।

जब ये नभ में बिखरती सोने सी किरणें,
फिर नए उजाले लाने को ढल रही थीं,
अपनी भी साँसें हौले-हौले
इस समाँ में घुल सी रही थीं।

यादों की नदियों तीरे बैठे थे
हम-तुम, और
वो आसमान पिघलते हुए नीलम हो रहा था।
एक ख़ामोशी सी थी, पर बयारें —
बयारें हल्की ठंड लिए,
तन की गर्म आहें लिए उड़ता जा रहा था।

ये परिंदे चहकते थे दिन भर आसमान में,
अब फेरते न थे मुख उस मंज़र पर
जो था तो बहुत सुंदर, पर आख़िरी भी।
वो आख़िरी मुलाक़ात थी,
या शायद, ये कल की ही तो बात थी।

कभी-कभी ज़िंदगी हमें एक ऐसा पल देती है, जो इतना सजीव होता है कि वो बीतने के बाद भी भीतर जिंदा रहता है। यह कविता उन अधूरे मगर खूबसूरत लम्हों का दस्तावेज़ है — जो हमारे पास न होते हुए भी हमारे साथ रहते हैं।

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