शीर्षक:
क्षणिक प्रेम, चिरंतन महक
लेखक: वृहद
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प्रस्तावना:
कुछ प्रेम जीवन में बस एक ऋतु की तरह आते हैं — क्षणिक, सजीव, पर सीमित।
वे ठहरते नहीं, मगर अपनी उपस्थिति से जीवन को सुगंधित कर जाते हैं।
यह कविता एक ऐसे ही प्रेम की स्मृति है —
जो क्षण भर को था, पर उसकी महक चिरंतन बनकर आत्मा में बस गई।
वे ठहरते नहीं, मगर अपनी उपस्थिति से जीवन को सुगंधित कर जाते हैं।
यह कविता एक ऐसे ही प्रेम की स्मृति है —
जो क्षण भर को था, पर उसकी महक चिरंतन बनकर आत्मा में बस गई।
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कविता:
तुम कली
मैं भँवरा
तुम्हें फूल बनाकर
तुझे महकता छोड़ आया
तेरे प्रेम की बगिया में
मैं सुबह की ओस सा ठहर न सका
मैं भँवरा
तुम्हें फूल बनाकर
तुझे महकता छोड़ आया
तेरे प्रेम की बगिया में
मैं सुबह की ओस सा ठहर न सका
तेरे रंग में रंगा, फिर भी
तेरी शाखों के संग न रह सका
तू सूरज की पहली किरण थी
मैं पलभर का साया
तू आज भी महक रही है वहीं
जहाँ मैं लौटकर न आया
तेरी शाखों के संग न रह सका
तू सूरज की पहली किरण थी
मैं पलभर का साया
तू आज भी महक रही है वहीं
जहाँ मैं लौटकर न आया
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समापन विचार:
प्रेम की सुंदरता उसकी स्थायीत्व में नहीं, बल्कि उसकी उस महक में होती है जो बिछड़ने के बाद भी मन को भीतर तक भर देती है।
क्या आपने भी कभी ऐसा कोई क्षणिक प्रेम जिया है जो आज भी आपकी आत्मा में गूंजता है?
क्या आपने भी कभी ऐसा कोई क्षणिक प्रेम जिया है जो आज भी आपकी आत्मा में गूंजता है?
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