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Thursday, July 10, 2025

आपका आना

 आपका आना


एक कोयल की कुक से मानो

गूंजा सुना अकिंचन प्रांगण मेरा,
किंचित उन नथ बाली से गुजरी थी
एक रौशनी, भरा अंधियारा मन मेरा । 

आपका आना...

जैसे बहारों ने चुपके से
मेरे आंगन की चौखट चूमी,
जैसे किसी भूले गीत की सरगम
फिर से यादों की रात में गूंजी।

आपका आना—

कोई सौंधी बयार थी सावन की,
जो सींच गई सूखते मन की मिट्टी,
जो ठहर गई पलकों पर ओस बनकर,
जो उतर गई सांसों में नाम बनकर।

मैंने सुना था
प्रेम आता नहीं बताकर,
पर आपका आना...
जैसे नज़र का पहली बार ठहर जाना,
जैसे हौले से कोई कह दे — "मैं हूँ यहाँ..."

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