poet shire

poetry blog.
Showing posts with label बचपन के भूले गीत।. Show all posts
Showing posts with label बचपन के भूले गीत।. Show all posts

Saturday, March 15, 2025

बचपन के भूले गीत: ये आधी-अधूरी सी ज़िंदगी।

 ये आधी-अधूरी सी ज़िंदगी,
सुस्त चाल में चलने की मंशा से,
रुकी हुई सी थी,पर चलती सी प्रतीत होती,
रेंग-रेंग कर भी बढ़ने की ख्वाहिश में
'बढ़ती हुई' समझने का भ्रम पालकर,
आगे भी नहीं देख पाती।

बस चंद कदमों की आहट लिए थी,
हौसला-अफ़ज़ाई को, ताकि कोई मंज़िल,
जो श्रम पर आधारित परिभाषित है,
उस तक पहुँचने को प्रयत्नशील हुई तो थी।
पर निरंतर इस प्रयास को जारी रखने के लिए,
जो पदचाप सुनाई देते थे, वे धूमिल हो गए हैं
दसों दिशाओं में।

और बढ़ने को ललायित ये 'कदम',
हर दिशा के होकर रह गए हैं।

फिर जब नींद टूटी, तो पाया—
कि हम एक पग भी न चले थे,
और वह पदचाप की आवाज़,
हमारे कानों की एक गूंज भर थी।

ads