उन यादों के मुसलसल
जो दिल के क़रीब हैं, मगर पास कभी नहीं आते।
जो रास्ते ख़्वाब बन गए, उन्हीं राहों की आस लगाते हैं,
क्योंकि हम राही, बेपनाह अश्कों का सराय बनाते हैं।
This blog is dedicated to poetry born from my tragedies and experiences—events that have allowed my emotions to flow into the stream of verse.
ये अश्क भी गीले पड़ गए हैं,
जो मोती तुमने ठुकरा दिए,
कुछ ख़ामोशियाँ बाक़ी हैं,
कुछ यादें अब भी बची हैं।
हर शाम कहती है कुछ यूँ—
ज़िंदगी एक शाम है, जिए जा रहे हैं,
ग़मों की एक जाम है, पिए जा रहे हैं।
ये जाम लफ़्ज़ों पे आए, तो बस आरज़ू है,
ये जाम नब्ज़ों में उतर जाए, तो बस ज़िंदगी है।
ज़ेहन से उठता धुआँ,
जिस तलब की तलाश में भटक रहा है,
जाने वो फिर से मिलेगी कैसे..
क्यों जीना यूं मुफ़लिसी में ज़िंदगी,
ये तो अदा है उनकी,
जिनसे सज गई है ज़िंदगी।
बस चंद कदमों की आहट लिए थी,
हौसला-अफ़ज़ाई को, ताकि कोई मंज़िल,
जो श्रम पर आधारित परिभाषित है,
उस तक पहुँचने को प्रयत्नशील हुई तो थी।
पर निरंतर इस प्रयास को जारी रखने के लिए,
जो पदचाप सुनाई देते थे, वे धूमिल हो गए हैं
दसों दिशाओं में।
और बढ़ने को ललायित ये 'कदम',
हर दिशा के होकर रह गए हैं।
फिर जब नींद टूटी, तो पाया—
कि हम एक पग भी न चले थे,
और वह पदचाप की आवाज़,
हमारे कानों की एक गूंज भर थी।