सुर्ख होठों से जो,
राख की कीमत पूछ ली
वो जलते रहे
इनकार के बहानो में।
This blog is dedicated to poetry born from my tragedies and experiences—events that have allowed my emotions to flow into the stream of verse.
कुछ तस्वीरें जमी थीं आँखों में,
जिनमें लिपटे हिए, दर्द में समोए थे।
संगीत बने थे जो निकले थे
धड़कनों की धुन से—
हमने उन्हें छंद और नग़मों में पिरोए थे।
शैलाब उठा चंचल मन में—
"अंजाम-ए-फ़िक्र से क्या होता है?"
नश्वर जग है चंद पलों का,
और उन चंद पलों को हमने
आँसुओं में ही खोया है।
नीली-नीली स्याही बहती थी,
जाने क्या कुछ न कहती थी।
शब्दों का मायाजाल बिखेरती—
या बस कर से करती क्रीड़ा थी?
या फिर मन,
उन स्याही के आँसुओं में
चुपके से रोया है?