poet shire

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Thursday, December 21, 2017

एक दौर


खुद के हौसलों की
हम दुहाई दें
या इससे रुस्वाई करें

जेहन में बसी याद ऐसी
की दूर जाने भी न दिया
और जुदाई ऐसी
की साथ रहने भी न दिया।

उन दौर में भी
आभा सी रही तुम
जो मुख पे खिलती
उषा भी रही तुम
जो हर छण मुझ पे
बिखरती आशा बन कर।

एहसास में बांध कर
हर सांस की डोर में पिरो कर
दिल की धड़कनों से गुज़ारा है
हर छंद में यादें  बसी हैं तुम्हारी
और शायद एक जीवन भी बसाया है
हमने तुमने मिलकर। 


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