खुद के हौसलों की
हम दुहाई दें
या इससे रुस्वाई करें
जेहन में बसी याद ऐसी
की दूर जाने भी न दिया
और जुदाई ऐसी
की साथ रहने भी न दिया।
उन दौर में भी
आभा सी रही तुम
जो मुख पे खिलती
उषा भी रही तुम
जो हर छण मुझ पे
बिखरती आशा बन कर।
एहसास में बांध कर
हर सांस की डोर में पिरो कर
दिल की धड़कनों से गुज़ारा है
हर छंद में यादें बसी हैं तुम्हारी
और शायद एक जीवन भी बसाया है
हमने तुमने मिलकर।
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