रात सजी थी चेहरे पे तुम्हारे
बेवफा झुमके कान को देगा दे गए
आत्मविभोर हुआ मन तुम्हारा,
जो पड़े मिले वही एक राज के अँधेरे में
खिल गयी उषा से चेहरे की रौनक तुम्हारी
बालम ! बरबस मुस्कुरा उठे चित तुम्हारे।
क्या एक पेशगी बाकि रह गयी है ?
मन चेतन में आवाज़ सी गूंज रही है
नित पुकारती एक
आकर्षण मनो जैसे कोई,
मैं ही गुम हूँ इस दुनिया में
मेरा भी एक यार छुपा रह गया
दिल के किसी अंधियारे में।
खिल गयी उषा से चेहरे की रौनक तुम्हारी
बालम ! बरबस मुस्कुरा उठे चित तुम्हारे।
क्या एक पेशगी बाकि रह गयी है ?
मन चेतन में आवाज़ सी गूंज रही है
नित पुकारती एक
आकर्षण मनो जैसे कोई,
मैं ही गुम हूँ इस दुनिया में
मेरा भी एक यार छुपा रह गया
दिल के किसी अंधियारे में।
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