(एक रूबाईनुमा कविता)
धूप ने चिट्ठी लिखी दीवारों पर,
नरऊँ-गेरूआँ पट सजा दीवार पर।
तेरे भीगे गेसुओं के कुछ छींटें थे,
सुबह ताज़गी ले, प्रांगण की दीवार पर।
नरऊँ-गेरूआँ पट सजा दीवार पर।
तेरे भीगे गेसुओं के कुछ छींटें थे,
सुबह ताज़गी ले, प्रांगण की दीवार पर।
********
फिर शाम ने सोने की चादर बिछाई,
तेरी याद जैसे तपकर लिपट आई।
अंजुमन में जो गुज़रे एहतियात-ए-मुलाक़ात,
दीवार पर सज गई बेताब लम्हों की परछाईं।
तेरी याद जैसे तपकर लिपट आई।
अंजुमन में जो गुज़रे एहतियात-ए-मुलाक़ात,
दीवार पर सज गई बेताब लम्हों की परछाईं।
---
- वृहद
(दिनांक: 6 अप्रैल 2025)
स्थान: यादों की दीवार के सामने बैठा मन
No comments:
Post a Comment