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Thursday, April 10, 2025

वृहद की चिट्ठी

 (एक रूबाईनुमा कविता)

धूप ने चिट्ठी लिखी दीवारों पर,
नरऊँ-गेरूआँ पट सजा दीवार पर।
तेरे भीगे गेसुओं के कुछ छींटें थे,
सुबह ताज़गी ले, प्रांगण की दीवार पर।

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फिर शाम ने सोने की चादर बिछाई,
तेरी याद जैसे तपकर लिपट आई।
अंजुमन में जो गुज़रे एहतियात-ए-मुलाक़ात,
दीवार पर सज गई बेताब लम्हों की परछाईं।
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- वृहद

(दिनांक: 6 अप्रैल 2025)

स्थान: यादों की दीवार के सामने बैठा मन

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