[भूमिका]
कुछ रास्ते ऐसे भी होते हैं —
जहाँ मंज़िलें पास आती नहीं,
और हम... खुद से दूर होते जाते हैं।
कुछ रास्ते ऐसे भी होते हैं —
जहाँ मंज़िलें पास आती नहीं,
और हम... खुद से दूर होते जाते हैं।
[मुख्य रचना]
वक़्त गुजरता गया,
तुम कामयाबियों के शिखर चढ़ते गए,
हम नाकामियों के अतल में गिरते गए।
हम नाकामियों के अतल में गिरते गए।
बेवजह मैं,
तृण-तृण तृष्णा के बियाबान में भटकता रहा,
मैं तुझमें हूँ — इसी भरम में पलता रहा।
मैं तुझमें हूँ — इसी भरम में पलता रहा।
ना जाना जो,
थे दुनिया के जुल्मों-सितम कितने अनेक,
एक जंग मैं खुद से ही चुपचाप लड़ता रहा।
एक जंग मैं खुद से ही चुपचाप लड़ता रहा।
[समाप्ति]
थक कर जब रुका,
तो जाना —
तमाम हारों में भी एक अजीब-सी जीत छुपी थी:
"खुद को पहचान लेने की।"
तो जाना —
तमाम हारों में भी एक अजीब-सी जीत छुपी थी:
"खुद को पहचान लेने की।"
~वृहद
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