poet shire

poetry blog.

Sunday, February 23, 2025

फ़रमान-ए-इश्क़

Romantic illustration inspired by an Urdu poem, reflecting love and elegance.

 आतिशी बाज़ियां दिल करने लगा,
आज फिर आपने जो गुनगुनाया।
महफ़िलों में रौनक है आपके होने से,
ये सफ़र इतना भी तन्हा न रहा अब।

गुलबांग-ए-मुहब्बत में सजी एक वफ़ा,
आंधी सी चली आज।
लुट गए गुलफ़ाम-ए-मुहब्बत की हंसी उड़ाने वाले,
और हम फ़कीरी में शहज़ादे हो गए।

फ़रमान-ए-इश्क़ की तकीद तलब कर,
महरूमियों की फ़कीरी में न बसर हो।
इत्तिला-ए-दिल-ए-दिल्लगी,
फिर नाचीज़ न हो।

Saturday, February 22, 2025

लख-लख बधाइयाँ जी

 लख-लख बधाइयाँ जी जो आप आये, इस धरती पर,
 ये दुनिया सतरंगी हो गयी है। 

ये आपकी खिलती हुई हँसी ही तो है, जो फूलों में खिलती है।
ऋतुओं में बसंत हैं आप, जो एक बार मुस्कुरा दें 
तो खिल जाते हैं, मुरझाने वाले फूल भी सभी।

यूँ ही खिले-खिले से रहिये सदा, यही है रब से दुआ, 
ये भी ले लीजिये मेरी सदा, हंसते-हंसाते रहिये, 
यूँ ही खिलते, खिलाते, खिलखिलाते रहिये।

चंचलता-नज़ाकत की, है आपसे ही तो सजी, 
भंवरा आवारा भी, गुंजन जो करे वन-उपवन में, 

वो भँवरे को मतवाली करती सुगंध, आपकी ही तो है।

ये चाँद, ये चाँदनी, ये नज़ारे हसीन, सब मेहरबानियाँ ही तो हैं, बस आपकी।
बहुत शुक्रिया जी जो आप आये, संग अपने बसंत को लाये, हर दिन को त्योहार बनाये।

तुम्हारा, बस तुम्हारा।

 
Ek jazbaati manzar jahan do aashiq apni aakhri mulaqat mein judaai ke ehsaas ko alfaz mein dhal rahe hain. Do dil, jo kabhi ek the, ab alag ho rahe hain, lekin unki aankhon mein mohabbat ki woh roshni ab bhi jhalak rahi hai.

क़यामत के रोज़ मिले हैं, 
तो भी आख़िरी दफ़ा है, 
जो कुछ पहले, हाल भी पूछा होता, 
तो क्या वो भी आख़िरी दफ़ा ही होता? 
जो ये क़यामत की बात न होती,
तो क्या अपनी बातें भी न होतीं?

सुबह तो होती रही है, 
आगे भी होंगी 
शामें भी ढलती रही हैं, 
आगे भी ढलेंगी 
क़यामत भी तो कोई,
 आज की बात नहीं।

हर सफल प्रेम कहानी,
 अधूरी रही है, 
क्या तुम्हारी और मेरी भी कहानी भी,
 अधूरी रह जाएगी?

अंजाम– ए–फ़िक्र की बात, 
अब रहने दो 
इस दिल को तुम्हारी तलाश, 
अधूरी रहने दो 
न तुम पूछो कभी,
मेरा हाल-ए-दिल 
न मैं जानूँ कि मैं कैसा हूँ, 

बस ये जान लो,

ये चराग़-ए-इश्क़ से रोशन दिल, 
तेरे नाम से जला है,
 ये शम्मा यूँ ही, तेरे नाम की जलती रहेंगी।

तुमसे मिल कर तुम में मिल चुका हूँ 
तुम्हें जानकर तुमसा ही हो चुका हूँ, 
अब कोई ख़ुद को कितना ही जाने 
अब कोई ख़ुद को कितना ही पहचाने।

कोई मुझसे मेरा नाम पूछे, ज़ुबाँ पे तेरा नाम आ जाता है, 
कोई मुझसे मेरा पता जो पूछे, हरसू तू ही तू नज़र आता है।

मैं जबसे तुम हो चुका हूँ, 
ये दिन-दुनिया, गीत-ग़ज़ल 

सब तुमको ही समर्पित कर चुका हूँ, 
मेरा मुझमें कुछ नहीं, 
सब कुछ तुम को अर्पण कर चुका हूँ।

तुम चाहो तो, 
हाल-ए-दिल न पूछो कभी पर, 
इस धड़कते दिल को 
तुम्हारी, तुम्हारी ख़ुशियों की परवाह है, हमेशा रहेगी।

तुम्हारा, बस तुम्हारा।

कुछ देर और ही सही

कुछ देर और ही सही, तेरे ख़्वाबों में ज़िंदा तो रहूंगा,
कुछ देर और ही सही, मेरे ख़्वाबों में तू आती रहेगी।

फिर जाने कब कोई नई ज़िंदगी मिले,
फिर जाने कब तेरे होने की कोई ख़्वाहिश करूं।

क्या जाने फिर से हसरतें कैसी होंगी,
क्या जाने अगले जन्म में तू याद रहे न रहे।
क्या ऐसे ही शुरू हुई थी अपनी कहानी,
मिलके भी न मिले, क्या बस दो पल की थी ज़िंदगानी।

फिर जो तुझे कोई आरज़ू हो,
मेरी यादों से दिल बहला लेना।
मैं संग चलूं या न चलूं,
तेरी ज़िंदगी के सफ़र में,
मेरे जज़्बों को दिल में कहीं, किसी कोने में,
सहलाए रखना।

जब जब तेरा दिल मुझे याद करेगा,
ये दिल भी थोड़ा धड़क लेगा,
मुझे मेरे ज़िंदा होने का एहसास,
और वक़्त के दिए ज़ख़्मों को,
थोड़ी राहत तुझे, थोड़ा मुझे भी राहत दे जाएगा।

वस्ल-ए-यार की आरज़ू,
शायद आरज़ू ही रह जाए।
पर ये आरज़ू ही आबाद रखना,
मुझे देखा हुआ,
कोई हसीन ख़्वाब समझकर,
मुझे अपने दिल में आबाद रखना।

इल्तिज़ा

"प्रेम और कविता की दुनिया में डूबे दो रूह, एक-दूसरे को शब्दों से जोड़ते हुए।"
है सनम तुझसे बस इतनी सी इल्तिज़ा, 
मैं भी तुझे लिखता रहूँ, तू भी मुझे लिखती रहे सदा।

तुझमें मैं,और मुझमें तू, कुछ यूँ ज़िंदा रहें, 
सफ़र-ए-ज़िंदगी मुकम्मल यूँ होती रहे सदा।

पिया मिलन की बात

 आधे अधूरे प्रसंग में, आपनो कह दी पूरी बात
हिये संजोये तस्वीर आपकी, ऐसा अपना साथ।

ख़िज़ा खिली, हुई सुखी पंखुड़ी गुलाब

आते जाते सामनो -

छेड़ी जो तुमने पिया मिलन की बात।

मेरी रज़ा - मेरी सज़ा


ख़ुदी को कर बुलंद इतना
कि हर तक़दीर से पहले,
ख़ुदा बंदे से पूछे —
“बता तेरी रज़ा क्या है?”
और मैं ख़ुदा से मांग लूँ —

"ऐ ख़ुदा, मुझे चंद लम्हे दे,
कि उनकी नज़रों की सरगोशियों में डूब जाऊँ।
सुना है, उनकी नज़रों से एक राह गुज़रती है —
जो सीधा उनके दिल तक जाती है।

 

वो दिल ही मेरी जन्नत है,
वही मेरी तक़दीर लिख दे।
आज मेरी ख़ुदी को इतना बुलंद कर दे —
कि इश्क़ भी सर झुका दे,
और तक़दीर भी मेरी मोहब्बत से सज़दा करे।

         यही मेरी रज़ा है — यही मेरी सज़ा कर दे। 

सच



सब अपने झूठ के मुखोटों संग हंस रहे थे
मैं सच का चेहरा लिए तन्हा खड़ा रहा।

And the moment never speak.

Friday, February 21, 2025

"माया एक आईना"

 "माया चेतना का आईना है, जिसमें वह स्वयं को प्रतिबिंबित करती है।"


शुन्य में जब मौन बसा था,

चेतन का कोई नाम न था।

अस्तित्व अकेला जाग रहा था,

स्वयं का भी पहचान न था।


फिर जन्मी एक छवि अनोखी,

अदृश्य सा एक खेल रचा,

चेतना ने स्वयं को देखन को,

माया का दर्पण रच डाला।

तेरे जाने के बाद

 

ले देख, तेरे जाने के बाद,

मुझमें "मैं" ज़िंदा न रहा,
ले देख, तेरे जाने के बाद,
मुझमें मुझ-सा कुछ न रहा।

यादों की अशर्फ़ियाँ बिखरीं,
हर एक पर तेरा नाम लिखा,
कश्तियाँ-ए-सफ़र बेजान पड़ीं,
बेरंग, बेआब, सुनसान पड़ीं।

शिकारा अब भी लहरों पे है,
मगर उसमें कोई आवाज़ नहीं,
एक चेहरा बैठा दूर कहीं,
पर आँखों में अब वो राज़ नहीं।

तू देख, तेरे जाने के बाद,
रास्ते भी भटके-भटके से हैं,
हवा भी ठहरी लगती है अब,
साया तक मेरा तनहा खड़ा है।

दिन ढलते हैं, पर शाम नहीं,
चाँद भी बुझा-बुझा सा है,
तेरी यादों की धूप ऐसी,
कि साया भी जलता दिखता है।

तू कहती थी, "वक़्त बदलेगा,"
मैं आज भी उस वक़्त में हूँ,
तेरा शिकारा बहता गया,
और मैं किनारे रुका ही रहूँ।

एक तेरे जाने के बाद...
सिर्फ़ एक तेरे जाने के बाद...

Tuesday, January 19, 2021

Reminicents of some fading reflections.....

          

After a long time I got some time alone. A hotel room, old monk that is still lying there in corner, waiting for its first sip to, sip in the thirsty lips. The cold morning of Prayagraj the empty rooms reminds me of what I lost last year. Actually much before just that realization happened last year. 

Its 10th time since I have been listening घर,by Bharat chauhan, since morning. These are last of feels reminiscent of you in me:

कभी मेरे घर की दहलीज़ पे जो तुम कदम रखोगी

तो सीलन लगी कच्ची दीवारों पे खुद को देख के चौकना नहीं.....

कुछ गाने यूं बेगाने हो जाएंगे, 
जागती रातों मे यूं हम तन्हा रह जाएंगे,
कभी सोचा ना था ।। 
ये सीने  मे सुलगे सुलगे जज़्बात 
जाने फिर कभी कोई आवाज बन पाएंगे 
ये जज़्बात इतने खाली खाली से रह जाएंगे ,
कभी सोचा ना था ।। 
सोचा था तुम आओगी, फिर कोई बहाना कर के 
सोचा था फिर तुम्हें ना जाने दूंगा, बसा लूँगा 
इस दिल मे रख कर, ये खयाल भी बस खयाल रह जाएंगे 
कभी सोचा ना था ।। 

हाँ, चौकना नहीं, 
तुम्हारे जाने के बाद कोई इन्हें रंगने आया नहीं 
तुम्हारे जाने के बाद कोई इन्हें रंगने आया नहीं
तन्हा इस सफर मे तुम्हारी यादों ने देखो आज फिर से मुझे कितना तन्हा कर दिया। 
खाली से दिनों और जागती रातों ने तुम्हें मुझमे कितना भर दिया। 

सूरज बुझे तो यहाँ भी आना

फ़ासलों में तुम खो ना जाना

कभी तो भूले से तुम मेरे इस घर को महकाना

कभी तो भूले से तुम मेरे इस घर को महकाना ...

गए तुम इतने दूर हो गए 
यादें भी अब धुंधली हो रही 
बस खयालों के पुलिंदे कसे रह गए हैं,
 
ये कैसा इश्क किया हमने 
न पूरे हुए - ना अधूरे रहे।।  
 




 


 

 

Tuesday, August 20, 2019

Some mesmerizing butterflies

These pictures were clicked by me out of idleness. Hope viewers enjoy it.
Camera : Oppo A3f
Location : Danwar village














Wednesday, April 17, 2019

प्रतिबिम्ब

जब भी देखता हूँ मैं खुद को
इन कविताओं में तुम्हारी,
जिंदगी बड़ी रंगीन सी दिखती है,
ये आयाम है कैसे पैगाम खबर नही
है ये इश्क़ का फ़ितूर या जुनून खबर नही
पर इस बात का गुरुर मुझे है जरूर ।

Saturday, November 24, 2018

जुदाई की वेदना

ऐ जाने वाले 
मुझसे जुदा होने पे,खुद पे ये जुल्म न कर
अभी बहुत आशियाँ देखने हैं तुझे 
हमने जो खोया एक दूजे से टूटकर 
उसके इल्जाम ए इल्म से इतर,
जो तेरे आंखों में सपनो के समंदर हैं
उन सपनो का सम्मान कर।

तो क्या हुआ एक सितारा जो अति प्यारा था
वो टूट गया, एक साथी था जो छूट गया
वक़्त के नजाकत में खुद नाजुक न बन।
मेरी न सही खुद की कदर कर
तेरे सपनोँ के समन का इन्तेकाम न कर 
मैं तेरा न सही, तू खुद की अपनी तो है।

Sunday, November 18, 2018

गुट्बजों की नगरी, ये गगरी!

दुनिया एक गगरी जिसमे 
है बस गुटबाज़ी हरी-भरी।

न कोई मुल्ला यहां 
न यहां कोई बुद्ध
फिर भी हो रहा 
ये कैसा धरम युद्ध

न दिखते देवदूत कोई
न दिखता कोई पिसाच 
फिर भी करम परखते 
दिखता है बस इंसान यहाँ।

गुटबाज़ों की नगरी में है अपने ही तौर बसे 
तंज़ व्यंग को हीं, है धर्म ग्रंथ पड़े हुए
इनका हुआ ना कोई अनुयायी यहाँ
धर्म ग्रंथ के पन्नो की ना कोई परछाईं यहाँ।
सुर्ख होठों से जो,
राख की कीमत पूछ ली
वो जलते रहे 
इनकार के बहानो में।

बयां के रंग।

अंदाज़ ए बयां उनके, महताब से हैं
ये दिल के शिकन भी कह देते हैं
और शब ए ग़म झलकते भी नही।

बेताबियां ए उल्फत से खींच लेते हैं
अंजाम, जिक्र ए फिराक का 
और बताते भी नही 
ज़ुल्मत ए शब मिज़ाज़ का।

Wednesday, August 29, 2018

आयतें

जर्द ए शब लिए
और कितना जिएं हम
पर अपना दर्द भी किससे कहे हम

एक दीवार है
प्रियतम उस पार है
ऐतबार ए दरख्त
जा पहुंची दीवार के ऊपर
आयतों की बेलें उग आयीं हैं
उनपर,
कुछ मेरी कुछ उनकी।

पुष्पाञ्जलि दरख्त के नीचे
मोगरे सिमट गए
ये प्रेम कहानी कह।







Thursday, July 12, 2018

Shimmers of your love

In some ways we were meant to be together
Might not be physically
Might not be in any of those conventional communications
The world perceives,
May be in your poems
May be in the words you'd whispered
Long back, still lingers.
Since the time we encountered each other
I had a haunch,a feeing that I couldn't repress
Even your absence never bothered me
For I knew I knew
You were in my heart always even before we knew each other.

And when I knew you someday
That hidden haunch got a meaning
That when I meditated upon. I knew you came into this world to fill my heart with love so pure, you have become a symbol of love in my heart . Every day it radiates upon me like a sun's blaze beaming upon me to fill me with an everlasting spirit of love. Thanks for being in my heart, for a sufi saint has said,"follow the light of your heart, it knows the way " . I know that love, that light in my heart is filled by you . It is everlasting mesmerizing, youthful and filled with compassion which has no ends.
Thanks for being a symbol of love in my heart. 

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