✍️ Vrihad
आतिशी बाज़ियां दिल करने लगा,
आज फिर आपने जो हमें गुनगुनाया।
महफ़िलों में है रौनक, आपके होने से,
ये सफ़र इतना भी तन्हा न रहा अब।
गुलफ़ाम-ए-मोहब्बत में सजी एक वफ़ा,
आंधी सी चली आज।
लुट गए गुलबांग-ए-मोहब्बत की हँसी उड़ाने वाले,
और हम फ़कीरी में शहज़ादे हो गए।
फ़रमान-ए-इश्क़ की तकीद तलब कर,
महरूमियों में फ़कीरी न बसर हो।
इत्तिला-ए-दिल्लगी-ए-दिल
फिर नाचीज़ न हो।