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Friday, February 21, 2025

"माया एक आईना"

 "माया चेतना का आईना है, जिसमें वह स्वयं को प्रतिबिंबित करती है।"


शुन्य में जब मौन बसा था,

चेतन का कोई नाम न था।

अस्तित्व अकेला जाग रहा था,

स्वयं का भी पहचान न था।


फिर जन्मी एक छवि अनोखी,

अदृश्य सा एक खेल रचा,

चेतना ने स्वयं को देखन को,

माया का दर्पण रच डाला।

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