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Saturday, February 22, 2025

तुम्हारा, बस तुम्हारा।

 
Ek jazbaati manzar jahan do aashiq apni aakhri mulaqat mein judaai ke ehsaas ko alfaz mein dhal rahe hain. Do dil, jo kabhi ek the, ab alag ho rahe hain, lekin unki aankhon mein mohabbat ki woh roshni ab bhi jhalak rahi hai.

क़यामत के रोज़ मिले हैं, 
तो भी आख़िरी दफ़ा है, 
जो कुछ पहले, हाल भी पूछा होता, 
तो क्या वो भी आख़िरी दफ़ा ही होता? 
जो ये क़यामत की बात न होती,
तो क्या अपनी बातें भी न होतीं?

सुबह तो होती रही है, 
आगे भी होंगी 
शामें भी ढलती रही हैं, 
आगे भी ढलेंगी 
क़यामत भी तो कोई,
 आज की बात नहीं।

हर सफल प्रेम कहानी,
 अधूरी रही है, 
क्या तुम्हारी और मेरी भी कहानी भी,
 अधूरी रह जाएगी?

अंजाम– ए–फ़िक्र की बात, 
अब रहने दो 
इस दिल को तुम्हारी तलाश, 
अधूरी रहने दो 
न तुम पूछो कभी,
मेरा हाल-ए-दिल 
न मैं जानूँ कि मैं कैसा हूँ, 

बस ये जान लो,

ये चराग़-ए-इश्क़ से रोशन दिल, 
तेरे नाम से जला है,
 ये शम्मा यूँ ही, तेरे नाम की जलती रहेंगी।

तुमसे मिल कर तुम में मिल चुका हूँ 
तुम्हें जानकर तुमसा ही हो चुका हूँ, 
अब कोई ख़ुद को कितना ही जाने 
अब कोई ख़ुद को कितना ही पहचाने।

कोई मुझसे मेरा नाम पूछे, ज़ुबाँ पे तेरा नाम आ जाता है, 
कोई मुझसे मेरा पता जो पूछे, हरसू तू ही तू नज़र आता है।

मैं जबसे तुम हो चुका हूँ, 
ये दिन-दुनिया, गीत-ग़ज़ल 

सब तुमको ही समर्पित कर चुका हूँ, 
मेरा मुझमें कुछ नहीं, 
सब कुछ तुम को अर्पण कर चुका हूँ।

तुम चाहो तो, 
हाल-ए-दिल न पूछो कभी पर, 
इस धड़कते दिल को 
तुम्हारी, तुम्हारी ख़ुशियों की परवाह है, हमेशा रहेगी।

तुम्हारा, बस तुम्हारा।

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