poet shire

poetry blog.

Saturday, February 22, 2025

कुछ देर और ही सही

कुछ देर और ही सही, तेरे ख़्वाबों में ज़िंदा तो रहूंगा,
कुछ देर और ही सही, मेरे ख़्वाबों में तू आती रहेगी।

फिर जाने कब कोई नई ज़िंदगी मिले,
फिर जाने कब तेरे होने की कोई ख़्वाहिश करूं।

क्या जाने फिर से हसरतें कैसी होंगी,
क्या जाने अगले जन्म में तू याद रहे न रहे।
क्या ऐसे ही शुरू हुई थी अपनी कहानी,
मिलके भी न मिले, क्या बस दो पल की थी ज़िंदगानी।

फिर जो तुझे कोई आरज़ू हो,
मेरी यादों से दिल बहला लेना।
मैं संग चलूं या न चलूं,
तेरी ज़िंदगी के सफ़र में,
मेरे जज़्बों को दिल में कहीं, किसी कोने में,
सहलाए रखना।

जब जब तेरा दिल मुझे याद करेगा,
ये दिल भी थोड़ा धड़क लेगा,
मुझे मेरे ज़िंदा होने का एहसास,
और वक़्त के दिए ज़ख़्मों को,
थोड़ी राहत तुझे, थोड़ा मुझे भी राहत दे जाएगा।

वस्ल-ए-यार की आरज़ू,
शायद आरज़ू ही रह जाए।
पर ये आरज़ू ही आबाद रखना,
मुझे देखा हुआ,
कोई हसीन ख़्वाब समझकर,
मुझे अपने दिल में आबाद रखना।

No comments:

Post a Comment

ads