लख-लख बधाइयाँ जी जो आप आये, इस धरती पर,
ये दुनिया सतरंगी हो गयी है।
ये दुनिया सतरंगी हो गयी है।
ये आपकी खिलती हुई हँसी ही तो है, जो फूलों में खिलती है।
ऋतुओं में बसंत हैं आप, जो एक बार मुस्कुरा दें
तो खिल जाते हैं, मुरझाने वाले फूल भी सभी।
यूँ ही खिले-खिले से रहिये सदा, यही है रब से दुआ,
ये भी ले लीजिये मेरी सदा, हंसते-हंसाते रहिये,
यूँ ही खिलते, खिलाते, खिलखिलाते रहिये।
चंचलता-नज़ाकत की, है आपसे ही तो सजी,
भंवरा आवारा भी, गुंजन जो करे वन-उपवन में,
वो भँवरे को मतवाली करती सुगंध, आपकी ही तो है।
ये चाँद, ये चाँदनी, ये नज़ारे हसीन, सब मेहरबानियाँ ही तो हैं, बस आपकी।
बहुत शुक्रिया जी जो आप आये, संग अपने बसंत को लाये, हर दिन को त्योहार बनाये।
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