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Sunday, November 18, 2018

गुट्बजों की नगरी, ये गगरी!

दुनिया एक गगरी जिसमे 
है बस गुटबाज़ी हरी-भरी।

न कोई मुल्ला यहां 
न यहां कोई बुद्ध
फिर भी हो रहा 
ये कैसा धरम युद्ध

न दिखते देवदूत कोई
न दिखता कोई पिसाच 
फिर भी करम परखते 
दिखता है बस इंसान यहाँ।

गुटबाज़ों की नगरी में है अपने ही तौर बसे 
तंज़ व्यंग को हीं, है धर्म ग्रंथ पड़े हुए
इनका हुआ ना कोई अनुयायी यहाँ
धर्म ग्रंथ के पन्नो की ना कोई परछाईं यहाँ।

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