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Wednesday, June 4, 2025

एक दोस्त विशेष...

(न यार था, न प्यार था — फिर भी था विशेष)

एक दोस्त बड़ा ख़ास होता है,
वो जो तुम्हारी हरकतें चुपचाप झेलता है,
तुम्हारी हँसी में खिलखिला के खेलता है।

तिर्गियों में नूर सा चमकता है,
तुम्हारे ख़िज़ाँ के मौसम में
चंपा–चमेली सा महकता है।

हिज्र के वीरानों में जब सन्नाटा गूँजता है,
वो तुम्हारे आँगन में
खुशियों-सा चहकता है।

संघर्ष की कड़ी धूप में —
जब सब छाँव छोड़ जाते हैं,
वो साया बन के साथ चलता है।

वो दोस्त...
न नाम माँगता है,
न तारीफ़ें चाहता है,
न हिसाब रखता है,
बस ख़ुद को तुम्हारी ज़िंदगी में
ख़ामोशी से बुनता है।

जो तुम्हें मिल जाए —
वो निष्काम, निर्विकार दोस्त,
उसे गले लगा लेना,
थोड़ा उसके साथ जी लेना।

और जब ग़मों के आँसू
आँख तक पहुँचें,
तो उसे देख के
कतरा–कतरा पी लेना।

~ वृहद



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