वो चुप है, ख़ामोश है, मौन है —
शांतनु की गंगा-सी।
शांतनु की गंगा-सी।
हज़ारों प्रहेलिकाएँ उसके मुख पर मंडरातीं,
शांतनु की गंगा-सी।
प्रेम की धारा नित विस्फुटित बहती उससे,
शांतनु की गंगा-सी।
एक प्रश्न के किनारों पर ठहरी हैं सारी ख़ुशियाँ,
शांतनु की गंगा-सी।
न कोई आर्तनाद, न कोई विद्रोह,
बस एक मौन स्वीकृति —
धारण किए सागर तक बहती जाती,
शांतनु की गंगा-सी।
विमुक्त करने उतरी चंचलता में भी स्थिर,
शांतनु की गंगा-सी।
प्रेम अग्नि में भी वाद-काज़ के न छेड़ो,
शांतनु की गंगा-सी।
No comments:
Post a Comment