poet shire

poetry blog.

Friday, June 27, 2025

तेरे नाम की लकीर

 (वृहद की कलम से एक रक्तिम प्रेम आख्यान)

एक ब्राह्मण ने कहा था —
"तेरे नाम की लकीर नहीं है हथेली में..."

उठा खंजर, और पूछ लिया तड़पते दिल ने —
"हे ब्राह्मण! बता,
कौन सी लकीर खींच दूं नसीब में?"
खून जितना गाढ़ा — लकीर दिया तेरे नाम गढ़ हमने।

अब भी कलीरे तेरे हाथों में किसी गैर की हैं,
सर टीका और साज-श्रृंगार —
अमृत किसी और सुहाग की है।

अस्पताल की चौखट पर कोई तो लेने आया था मुझे,
टूट कर वो भी कह गया —
"तू खुद ज़िंदगी से रुख़सत हो,
ज़िंदगी उसके नाम कर गया ..."

No comments:

Post a Comment

ads