poet shire

poetry blog.
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Saturday, March 22, 2025

लिखने जो बैठूं तुझे,

लिखने भी बैठूं तुझे, तो क्या लिखूं मैं,
लिख दूं अपने दर्दे-जिगर का हाल,
या लिखूं खय्याम से खयाल।

लिख दूं सुबू सी, तेरी आंखों की प्यालियां,
तेरी महफ़िल में बदनाम आशिकों की गलियां।
कौन-कौन से हुस्न का रखूं हिसाब,
तेरे जौहर हैं सारे बेहिसाब।

Friday, March 21, 2025

कभी-कभी,

तुकों में खेलता, उलझता रहता था मैं, बस,
यही सोचता, क्यों हैं ये लफ़्ज़ इतने दिलकश।

इन तुकों का क्या करूँ, कैसे ढालूँ एहसास,
लिखूँ तो क्यों बिखर जाए, चुप रहूँ तो कश्मकश।

लफ़्ज़ों में रखूँ आग, या पानी कर दूँ इन्हें,
अश्कों में भीग जाएँ, या शोला बनें बेबस।

काग़ज़ की ये सतह भी कुछ कहती है मुझसे,
लिखने को बेचैन हूँ, फिर भी हूँ ख़ामोश बस।

Thursday, March 20, 2025

संजोग।

प्रकृति की गति, होती वृत्ति से,
एक तेरी थी, एक मेरी थी।
कैसे कह दूं मिलना संजोग़ था,
क्यों न कह दूं,
मिले हम अपनी गति से,
एक तेरी थी, एक मेरी थी।

लय की बयार बहती, प्र-वृत्ति से,
एक तेरी थी, एक मेरी थी।
बहना–बहकाना संजोग़ था कैसे,
क्यों न कह दूं,
मिले हम अपनी ही लय से,
एक तेरी थी, एक मेरी थी।

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