poet shire

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Saturday, March 22, 2025

हक़ीक़त के आईने

ऐब-ए-हुनर में जीने वाले,
इतराते बहुत हैं।

जहीन-ए-फ़ितरत में जीने वाले,
छुपाते बहुत हैं।

दस्तूर-ए-सच को अपनाने वाले,
निभाते बहुत हैं।

वर्शन 2

हुनर-ए-ऐब में जीने वाले,
इतराते बहुत हैं।

फ़ितरत-ए-जहीन में जीने वाले,
छुपाते बहुत हैं।

सच-ए-दस्तूर को अपनाने वाले,
निभाते बहुत हैं।

Thursday, March 20, 2025

संजोग।

प्रकृति की गति, होती वृत्ति से,
एक तेरी थी, एक मेरी थी।
कैसे कह दूं मिलना संजोग़ था,
क्यों न कह दूं,
मिले हम अपनी गति से,
एक तेरी थी, एक मेरी थी।

लय की बयार बहती, प्र-वृत्ति से,
एक तेरी थी, एक मेरी थी।
बहना–बहकाना संजोग़ था कैसे,
क्यों न कह दूं,
मिले हम अपनी ही लय से,
एक तेरी थी, एक मेरी थी।

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