![]() |
ठंडी की ठिठुरन सी जिंदगी में,
बुझते अलाव की चिंगारी सी,
कुछ राहत है तुम्हारी यादों में।
बुझते अलाव की चिंगारी सी,
कुछ राहत है तुम्हारी यादों में।
बोलती हैं तस्वीर भी तुम्हारी अकसर
जो तुम कभी चुप सी हो जाती हो,
जाड़े की धूप भी न हो कभी तो
कांपते लफ्ज़ संभल जाते हैं इन्हें देख कर।
No comments:
Post a Comment