(विशेष प्रस्तुति: तंबाकू निषेध दिवस – 31 मई)
आज विश्व तंबाकू निषेध दिवस है।
लेकिन क्या सचमुच हम तंबाकू से ‘निषेध’ कर पाए हैं? या फिर बस नाम की मुहिमों में हिस्सा लेकर, फिर उसी गुमटी की ओर मुड़ जाते हैं?
ग़ज़ल एक समय में इश्क़ की ज़ुबान थी, आज इसे हमने समाज के ज़हर को आइना बना दिया है।
गुटका, सिगरेट, तंबाकू – जो कभी बुराई थी, अब आदत बन चुकी है।
लेकिन इस आदत की कीमत है — साँसें, ज़ुबां, होठ, और फिर ज़िंदगी।
आज के दिन, ये ग़ज़ल उनके लिए है — जो अब भी कहते हैं: "एक कश और..."