ऐ मोम की लाली, थोड़ी गर्माहट दे,
इस तन्हाई में थोड़ी राहत दे,
पिघले तेरा तन जो सरिता बन के,
उस खोए तन से मेरे मन को राहत तो दे।
ऐ मोम की बत्ती, थोड़ा धीरे जलना,
हवा के झोंके आएंगे, पर तुम न बुझना,
अंधेरी अश्कभरी ख़ामोशियों में है मुझे जीना,
ऐ बुझते मोम, है तुझसे यही कहना।
हवा, पानी — दुश्मन मेरे बहुतेरे,
काश! हो जाते वो मेरे सवेरे,
इन गुमनाम अंधेरों में हैं हम अकेले,
मंज़िल है दूर, मिल जाए जो तू थोड़ा और जले।
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