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Wednesday, September 5, 2012

बुझती जिंदगी.




मोम कि लाली थोडी गर्माहट दे ,
इस तन्हाई में थोडी रहत दे,
पिघले तेरे तन जो सरिता बन के,
ऊस खोए तन से मेरे मन को रहत तो दे।

मोम कि बत्ती थोडा धीरे जलना,
हवा के के झोंके आएंगे पर तुम बुझना,
अंधेरी अश्कभरी खामोश्यिओं में है मुझे जीना,
बुझते मोम है तुझसे येही कहना।

हवा, पानी , दुश्मन मेरे बहुतेरे ,
काश ! हो जाते वो मेरे सवेरे ,
इन गुमनाम अँधेरी में हैं हम अकेले,
मंजिल है दूर मिल जाये जो तू थोडा और जले।

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