वो फूल जो खिले थे बसंत में
आज पतझड़ के कांटे हो गए हैं
वो छणिक धुप सुनहरी भी,
आज बदरंग और काली हो गयी है।
वो दिल जो कल तक खुशी का जरिया था,
आज एक दर्द का दरिया हो गया है।
वो कल,जो कल तक एक हसीं हकीकत थी,
आज की ख्वाइश हो गयी है,
वो चिराज भी अँधेरे बांटता है
जो कल तक सूरज की फरमाइश थी।
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