What is the size of a zero?
This blog is dedicated to poetry born from my tragedies and experiences—events that have allowed my emotions to flow into the stream of verse.
poet shire
Wednesday, September 26, 2012
ThE SiZE Of a Zer'0'
What is the size of a zero?
o thou which burneth
For once
taste the sweetest brook n still thirst,
for once i want to be lone nd still be in crowd,
for once i want to be searched but never found,
in your feelings in your thoughts for once,
Wednesday, September 5, 2012
बुझती जिंदगी.
ऐ मोम की लाली, थोड़ी गर्माहट दे,
इस तन्हाई में थोड़ी राहत दे,
पिघले तेरा तन जो सरिता बन के,
उस खोए तन से मेरे मन को राहत तो दे।
ऐ मोम की बत्ती, थोड़ा धीरे जलना,
हवा के झोंके आएंगे, पर तुम न बुझना,
अंधेरी अश्कभरी ख़ामोशियों में है मुझे जीना,
ऐ बुझते मोम, है तुझसे यही कहना।
हवा, पानी — दुश्मन मेरे बहुतेरे,
काश! हो जाते वो मेरे सवेरे,
इन गुमनाम अंधेरों में हैं हम अकेले,
मंज़िल है दूर, मिल जाए जो तू थोड़ा और जले।
वक़्त के दो धारे।
आसमान, शाम की चादर ओढ़ता चला गया,
अँधेरा, सूरज को निगलता चला गया,
अंधेरे गलियारों में, रात का जश्न बढ़ता चला गया,
तारों की बारात में, चाँद का हुस्न खिलता चला गया।
मैंने खिड़की से झाँका तो,
झील-सी सुनहरी आवाज़ को आकार मिलता चला गया,
हम तो खोए थे किसी की यादों में,
यादों के गीत बनते चले गए।
जो तस्वीर बची थी दिल के किसी कोने में,
वो भी रात के हुस्न की दीवानी हो गई,
हम तो यादों के चंद लम्हों से गुजर रहे थे,
यादों के हर मोड़ पर, वो दिखते चले गए।
पिघले जो मेरे ग़म के आँसू,
वे ग़मों की सरिता बनकर मुझसे बिछड़ती चली गई।
सुनहरी धूप के बाद, अंधकूपों के गलियारों में
बचपन मुझसे दूर होता चला गया।
बस चंद लम्हे, फूल बन, महकते हुए रह गए,
वक़्त दो धाराओं में बंटता चला गया,
हम उस पल में जी न सके,
वक़्त की वो धार भी हमसे दूर होती चली गई।
मुक्तछंद version :
"वक़्त की धार और यादों का जश्न"