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Friday, March 14, 2025

ख़ुमारी बने बादल

 एहसास-ए-लफ़्ज़! :

ख़ुमारी बने बादल


ये मेरे निर्मोही क़दम, क्यों तुझ तक ले जाएँ ना,
ये ख़ुमारी बने बादल, क्यों तुझको फिर बरसाएँ ना।

ये वक़्त की साक़लें, ये बेबसी की बेड़ियाँ,
ये धड़कनों की नादें, यादें बनी बेसब्रियाँ।
फिर से तू क्यों मुझे आज़माए ना,

ये मेरे निर्मोही क़दम, क्यों तुझ तक जाएँ ना,
ये ख़ुमारी बने बादल, क्यों तुझको फिर बरसाएँ ना।

अंधक उसूल हैं, या बंधक रसूल है,
या ख़ुदा, मुझमें मेरा सा आज़ बेख़बर सा क्यों है।
मेरी मुझसे क्यों तू पहचान कराए ना। 

वो ख़्याल, जो दरख़्त बन के मुझमें उग आया है,
ख़िज़ां हुई शाख़ों पे, प्यार के फूल क्यों तू खिलाए ना।

ऐ प्रियतमा मेरी, क्यों तू मुझमें फिर उतर आए ना,
साँसों में गिरती ज़िंदगी में, तू क्यों फिर समाए ना।
यादों की तरह, क्यों तू भी आए ना।

ये मेरे निर्मोही क़दम, क्यों तुझ तक ले जाएँ ना,
ये ख़ुमारी बने बादल, क्यों तुझको फिर बरसाएँ ना।



ग़ज़ल:

ख़ुमारी बने बादल। 


 ये मेरे निर्मोही क़दम क्यों तुझ तक जाए ना,
 ख़ुमारी बने बादल, तुझको क्यूं बरसाए ना।

 वक़्त की साकलें,  हैं बेबसी की बेड़ियाँ,
धड़कनों की नाद-ए -हद, अनहद क्यूँ बन जाए ना।

 बेखयाली जो दरख़्त बनकर मुझमें उग आया ,
 ख़िज़ां की शाखों पे प्रेम -सुमन क्यूं तू खिलाए ना।

 अंधक उसूल हैं या बंधक रसूल है,
मुझमें ही मेरा अक्स क्यूं मुझको नज़र आए ना।

 साँसों में गिरती ज़िंदगी में है तेरा निशाँ,
तेरी ही याद क्यूं फिर मुझमें समाए ना।

 ओ मेरी प्रियतमा, क्यूं तू मुझमें उतर आए न,
ख़्वाबों में है जो सूरत, आँखों में समाए ना।


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