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Wednesday, April 9, 2025

नारी – शृंगार और सौंदर्य

लेखन: वृहद

बिखरे कुंतल, उन्मुक्त है नारी,
पुलकित अधर, मुस्कान आभारी।
उन्नत उरोज, श्वेत तन रज धारी,
लसद-कटि, संग लगे वो न्यारी।

नैनन से जो देखे नारी,
हिए में उतरे चले कटारी।
बालखावत अदा सुकुमारी,
चंचल गति, मृदु छवि प्यारी।

नाज़ुक कलियाँ, कंगना भारी,
अंग-अंग में शोखी सारी।
धीमे बोलत फूल बिसारी,
चलत चपला, लहर पखारी।

मंद हँसी, चंद्रिका छा री,
नूपुर प्रीत की राग सुना री।
पथ-पथ चंपा चून बिछा री,
पग पैजन संग, फाग लुटा री।




काव्य टिप्पणी:
यह कविता नारी सौंदर्य के उस पक्ष को चित्रित करती है, जहाँ शृंगार आत्मा की भाषा बन जाता है। वह केवल एक दृश्य नहीं, अपितु अनुभूति है — जीवन, राग, और रस का आलंबन। यही नारी, हमारे आगामी महाकाव्य की प्रेरणा भी है।

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