अनुवादित :
‘T’ पंथ
एक ‘T’ संधिस्थल पर खड़ा,
अवलोकन करता प्रारब्ध की नियति —
कर्म के आज्ञापत्र
क्या देंगे आदेश?
सफलता की दहलीज़ से
विफलताओं की राहों तक
अभिसारित होते पंथ,
ऐसे चलना,
कम महत्त्व रखता गया।
एक रास्ता जो कभी नहीं थमता,
साँसों में धूल समेटे,
खोज में भटकन बढ़ती गई।
एक राह, घर बन गई,
जब
पीछा किया क्षितिज के
प्रभात का
और
गोधूलि का।
कुछ आकाश सफेद रहे
पूरी रात भर,
कुछ अंधेरे छाए रहे
पूरा दिन भर।
कुछ बूंदें ठहरी हैं
मेरी आँखों की कोरों पर,
एक बूंद चमकती है केसरिया —
सूर्य को अर्पण-स्वरूप।
जब महसूस होता है
माँ प्रकृति का प्रेम,
वातावरण की धुंध और दीवानगी,
महत्त्वाकांक्षा, जुनून और उत्साह —
जब धरती माँ से लिपटते हैं,
एक आत्मा जाग उठती है
अज्ञान की नींद से।
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