हम बढ़ रहे है किस जीवन की ओर ,
जीवन में हो आनंद,लगी है इसकी होड़ ,
कंप्यूटर, टेकनोलोजी वालों का खूब लगा है जोर
व्यस्त पस्त जीवन में गाड़ियों का ही शोर,
भूल गए हम ख़ुशी छुपी वैराग की ओर।
बहुतेरे गाने रेडियो के सुन, नाचते जैसे मोर,
सौ- सौ फिल्मे देख ये कहते, "ये दिल मांगे मोर"
हमें नए मोबाइल दिला दो हम तो हो गए बोर
अरे ख़ुशी कहाँ ढूंढ़ते छुपी वैराग की ओर।
सुखी जीवन की आड़ में लाखो गए भाड़ में ,
फिर भी सहस्रों जीने की तमन्ना नही वो देते छोड़ ,
नित बड़ा बन्ने की चाह में, वो देते सारी सांसे छोड़,
भूल गए हम त्यागने में सुख है, दुःख है पाने की होड़।
त्याग त्याग कर भी न पाया, मन में घुसा है चोर,
बेमन से कुछ नही मिलेगा खूब लगा ले जोर,
अरे कहाँ से सुख पायेगा जब ध्यान नही हरी की ओर,
पाना है सुख तो कर मुख वैराग की ओर।
मंदिर मस्जिद में लोग रोज मचाते शोर,
चिल्लाने से नही मिलेंगे खूब लगा ले जोर,
रिझाने को पत्थरों को खूब लगी है होड़,
कीर्तन करते पत्थरों के हो चाहे साँझ या भोर,
समझते नही दुनियावाले की, झूठी तारीफ है, और
अब प्रभु भी हो गए हैं बोर....
No comments:
Post a Comment