This blog is dedicated to the poetry from my tragedies, experiences, these events have let flow my emotions into the stream of poetry...
poet shire
Saturday, February 22, 2025
Friday, February 21, 2025
"माया एक आईना"
"माया चेतना का आईना है, जिसमें वह स्वयं को प्रतिबिंबित करती है।"
शुन्य में जब मौन बसा था,
चेतन का कोई नाम न था।
अस्तित्व अकेला जाग रहा था,
स्वयं का भी पहचान न था।
फिर जन्मी एक छवि अनोखी,
अदृश्य सा एक खेल रचा,
चेतना ने स्वयं को देखन को,
माया का दर्पण रच डाला।
तेरे जाने के बाद
ले देख, तेरे जाने के बाद,
मुझमें "मैं" ज़िंदा न रहा,
ले देख, तेरे जाने के बाद,
मुझमें मुझ-सा कुछ न रहा।
यादों की अशर्फ़ियाँ बिखरीं,
हर एक पर तेरा नाम लिखा,
कश्तियाँ-ए-सफ़र बेजान पड़ीं,
बेरंग, बेआब, सुनसान पड़ीं।
शिकारा अब भी लहरों पे है,
मगर उसमें कोई आवाज़ नहीं,
एक चेहरा बैठा दूर कहीं,
पर आँखों में अब वो राज़ नहीं।
तू देख, तेरे जाने के बाद,
रास्ते भी भटके-भटके से हैं,
हवा भी ठहरी लगती है अब,
साया तक मेरा तनहा खड़ा है।
दिन ढलते हैं, पर शाम नहीं,
चाँद भी बुझा-बुझा सा है,
तेरी यादों की धूप ऐसी,
कि साया भी जलता दिखता है।
तू कहती थी, "वक़्त बदलेगा,"
मैं आज भी उस वक़्त में हूँ,
तेरा शिकारा बहता गया,
और मैं किनारे रुका ही रहूँ।
एक तेरे जाने के बाद...
सिर्फ़ एक तेरे जाने के बाद...
Tuesday, January 19, 2021
Reminicents of some fading reflections.....
After a long time I got some time alone. A hotel room, old monk that is still lying there in corner, waiting for its first sip to, sip in the thirsty lips. The cold morning of Prayagraj the empty rooms reminds me of what I lost last year. Actually much before just that realization happened last year.
Its 10th time since I have been listening घर,by Bharat chauhan, since morning. These are last of feels reminiscent of you in me:
कभी मेरे घर की दहलीज़ पे जो तुम कदम रखोगी
तो सीलन लगी कच्ची दीवारों पे खुद को देख के चौकना नहीं.....
हाँ, चौकना नहीं,
तुम्हारे जाने के बाद कोई इन्हें रंगने आया नहीं
तुम्हारे जाने के बाद कोई इन्हें रंगने आया नहीं
सूरज बुझे तो यहाँ भी आना
फ़ासलों में तुम खो ना जाना
कभी तो भूले से तुम मेरे इस घर को महकाना
कभी तो भूले से तुम मेरे इस घर को महकाना ...
Tuesday, August 20, 2019
Wednesday, April 17, 2019
प्रतिबिम्ब
इन कविताओं में तुम्हारी,
जिंदगी बड़ी रंगीन सी दिखती है,
ये आयाम है कैसे पैगाम खबर नही
है ये इश्क़ का फ़ितूर या जुनून खबर नही
पर इस बात का गुरुर मुझे है जरूर ।